प्रतिकूल
मैं जिसे आग कहूँ ,उसमे उसे
शहद का रंग नज़र आता है
अलग अलग सोच है पर सार
वही है !
उसे इश्क है
मुझे प्रेम है..
नाम अलग है..
पर! जज्बा वही है..!
मेरे डर मे मोहब्बत है
और उसके इंतज़ार मे!
मुझे इल्म है ज़ख्मों की गहराई का
उसे चाह है इश्क की आग की
मै सुनती हूँ आवाज़ तूफानों की
उसे लगता है बहार है!
वो जीना चाहता है इस दर्द को
पर मै खौफज़दा हूँ
दीदार-ऐ-यार के ख़याल से भी..
डरती हूँ कहीं खो न जाए हर ख्वाब बस
एक ही पल मे..!
चाहे जितना खौफ हो..
चाहे जितना दर्द..
हमें पता है हमारा नसीब ...
एक तो हमें होना है
की कहीं..
जिस्म भी जिंदा रह सका है
रूह के बिना..
की सुना कभी कोई फूल
हो खुशबू के बिना.
या कोई आँख हो अश्क के बिना...
सो है वो और मैं..
एक दुसरे के वास्ते ......
अंदाज़ अलग हो या सोच..
मज़हब अलग हो या...
परंपरा..
रिश्ता तो दिल का दिल से ही है
और रहेगा...
विचार प्रतिकूल हुए तो क्या..
भावना तो सबमें एक ही निहित है!!!
12.34.p.m.
04-05-09
hey nice blog....!!
ReplyDeleteplz visit my blog also if u hav time...
www.kornerkafe.blogspot.com
khoobsurat kavita ke liye badhai, mridula ji
ReplyDeleteBohat accha likhti ho aap... iss jyada kehne ko kuch nahi hai mere paas
ReplyDeletepratikulta ki bhavna mei bhi
ReplyDeleteanukoolta hai......ant mei sheetalta paradan kerti hui, ek sunder bhavnatmak abhivyakti hai...!
Bahut sunder.....Mridu !!!
anurag da-thank u
ReplyDeletedeepali-thank u so much
kunaal-itna hi kaafi hai dost dshukriya
rahul-bahut bahut shukriya mittr
adbhut bus lag raha tha ki khayaalon ko kaala rang delkar uker diya ho shabdo ke roop main...... dhanyavaad!!!
ReplyDeletewow ,great piece of poetry....i also write some lines..but they appear novice to me after reading ur blog....
ReplyDeletegaurav n abhishek...dhanyavaad
ReplyDeletesadme mei hun aaapki kavita padhke..
ReplyDeletehum sochte the hum kavita likhte hain..
abhi samajh aaya kavita kya hoti hai :D
Nice blog and poems,,,,
ReplyDeletekeep it up...
Mridula I Love your poems...
ReplyDeleteThank you
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